"आत्म मुग्ध मन ये बढ़ चला ,
किया न चिंतन न हि मनन ,,
छोड़ सब ये चल चला ,,
काल्पनिक  महत्त्वकांक्षाओं के भ्रम में,,
आत्म स्थापना के मंथन में,,
अपने -पराये सब भुल चला"

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