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"आत्म मुग्ध मन ये बढ़ चला , किया न चिंतन न हि मनन ,, छोड़ सब ये चल चला ,, काल्पनिक  महत्त्वकांक्षाओं के भ्रम में,, आत्म स्थापना के मंथन में,, अपने -पराये सब भुल चला"

"आत्म मुग्धता"

"खुद से मोहब्बत में यूं मसरुफ़ हुआ मैं , किसी और से मोहब्बत का वक्त नहीं, औरों से गया ठुकराया जब मैं, खुद से बेहतर कोई मिला नहीं"