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धार्मिक जागरण

 पिता किसी दिवस से कहीं अधिक स्वयं ही देव स्वरुप हैं जैसे हमारे धर्म ग्रंथों में है उदाहरणार्थ पद्मपुराण में कहा गया " सर्वतीर्थमयी माता सर्वदेवमयः पिता।" इसी प्रकार मनुस्मृति में " पिता मूर्ति: प्रजापतेः’"  महाभारत में युधिष्ठर ने यक्ष के एक प्रश्न के उत्तर में आकाश से ऊँचा ‘पिता’ को कहा है हिन्दी साहित्य में ‘पिता’ को ‘जनक’, ‘तात’, ‘पितृ’, ‘बाप’, ‘प्रसवी’, ‘पितु’, ‘पालक’, ‘बप्पा’ आदि अनेक पर्यायवाची नामों से जाना जाता है। पौराणिक साहित्य में श्रवण कुमार, अखण्ड ब्रह्चारी भीष्म, मर्यादा पुरुषोत्तम राम आदि अनेक आदर्श चरित्र प्रचुर मात्रा में मिलेंगे, जो एक पिता के प्रति पुत्र के अथाह लगाव एवं समर्पण को सहज उल्लेखित करते हैं। वैदिक ग्रन्थों में ‘पिता’ के बारे में स्पष्ट तौर पर उल्लेखित किया गया है कि ‘पाति रक्षति इति पिता’ अर्थात जो रक्षा करता है, ‘पिता’ कहलाता है। परंतु ये हमारी ये नई पीढ़ी हमारे धर्म-ग्रन्थों के असीमित और सर्वश्रेष्ठ ज्ञान से अनभिज्ञ । हमारी प्राचीनतम सभ्यता पवित्र परंपराओं से दूर,,सम्पूर्ण रूप से पश्चिम की सभ्यता और मान्यताओं से प्रभावित होती जा रह
"आत्म मुग्ध मन ये बढ़ चला , किया न चिंतन न हि मनन ,, छोड़ सब ये चल चला ,, काल्पनिक  महत्त्वकांक्षाओं के भ्रम में,, आत्म स्थापना के मंथन में,, अपने -पराये सब भुल चला"

"आत्म मुग्धता"

"खुद से मोहब्बत में यूं मसरुफ़ हुआ मैं , किसी और से मोहब्बत का वक्त नहीं, औरों से गया ठुकराया जब मैं, खुद से बेहतर कोई मिला नहीं"
                               " Materialism is life today" It's the true meaning of life somtimes a hurtful ones that ,,only successions are acceptable and rememberable in life ,,it's the bitter reality that your own blood ,gives you real love ,respect and favourable support ,when your are successful ,,but funny thing is what success means in today's era ,, nothing jst the achievement of physical means ,,mostly even almost means related to comfort luxury and materialism .There is no count of your , nature , behaviour ,,attitude and simply the prsn you are ...jsst one thing admissible for being respectable and rememberable is the existence of physical means around you,,and I think it's also covers the designations ,,if any you achieved in your life ,,all at the end are part of materialism..It's some how true and rightful as ,,everyone in his life have some "lifegoal"..To run around ...But life goals must be the subject of our concern ,,not the

जीवन-सुधा

,कल का दिन किसने देखा है, आज अभी की बात करो। ओछी सोचों को त्यागो मन से, सत्य को आत्मसात करो। जिन घड़ियों में हंस सकते हैं, क्यों तड़पें संताप करें। सुख-दु:ख तो है आना-जाना, कष्टों में क्यों विलाप करें। जीवन के दृष्टिकोणों को, आज नया आयाम मिले। सोच सकारात्मक हो तो, मन को पूर्ण विराम मिले हिम्मत कभी न हारो मन की, स्वयं पर अटूट विश्वास रखो। मंजिल खुद पहुंचेगी तुम तक, मन में सोच कुछ खास रखो। सोच हमारी सही दिशा पर, संकल्पों का संग रथ हो। दृढ़ निश्चय कर लक्ष्य को भेदो, चाहे कितना कठिन पथ हो। जीवन में ऐसे उछलो कि, आसमान को छेद सको। मन की गहराई में डुबो तो, अंतरतम को भेद सको। इतना फैलो कायनात में, जैसे सूरज की रोशनाई हो। इतने मधुर बनो जीवन में, हर दिल की शहनाई हो। जैसी सोच रखोगे मन में, वैसा ही वापस पाओगे। पर उपकार को जीवन दोगे, तुम ईश्वर बन जाओगे। तुम ऊर्जा के शक्ति पुंज हो, अपनी शक्ति को पहचानो। सद्भावों को उत्सर्जित कर, सबको तुम अपना मानो।

"life is a festival evry second"

we live in present,don't know wat'gonna b d future n ...n wat lost is past....but being in future scurence n rmemrng past make us loose our present...i urge to evry1 live lyf in its present form ..lyk dere is no future and was no past.....enjoy evry moment lyk its urs last day...give urs bst in urs efforts dosn't mattrs wat will be d rsult ...jsst b u ...hav fun n enjoy d music of lyf